प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय रतलाम द्वारा दिनांक 8 जून 2025 (रविवार) को डोंगरे नगर स्थित सेवाकेंद्र दिव्य दर्शन भवन में “प्रगतिशील राष्ट्र का दर्पण: आत्मनिर्भर किसान” विषय पर एक दिवसीय भव्य किसान सम्मेलन का आयोजन किया गया। यह सम्मेलन आत्मनिर्भरता, आध्यात्मिक उन्नति और आधुनिक कृषि ज्ञान के समन्वय का सजीव उदाहरण बना।
कार्यक्रम में माउंट आबू से पधारे कृषि एवं ग्राम विकास प्रभाग के मुख्यालय संयोजक राजयोगी ब्रह्माकुमार सुमंत भाई, ब्रह्माकुमारीज़ इंदौर ज़ोन की क्षेत्रीय निदेशिका राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी हेमलता दीदी, इंदौर से वरिष्ठ राजयोग शिक्षिका ब्रह्माकुमारी अनीता दीदी, सहायक संचालक कृषि रतलाम भीका वास्के, सहायक संचालक कृषि जावरा नीशा सोलंकी, पूर्व भाजपा जिलाध्यक्ष ईश्वरलाल पाटीदार, कॉरपोरेट ट्रेनर डी. पी. आंजने तथा ब्रह्माकुमारीज़ रतलाम सेवाकेंद्र संचालिका ब्रह्माकुमारी सविता दीदी की गरिमामयी उपस्थिति रही।
मुख्य अतिथि के रूप में म. प्र.कृषक संघ आयोग के पूर्व अध्यक्ष एवं पूर्व भाजपा जिलाध्यक्ष भ्राता ईश्वर लाल पाटीदार ने अपने संकल्पों के माध्यम से सभी किसानों से आह्वान किया —आज से हम यह संकल्प लें कि न तो स्वयं ज़हर खाएँगे और न ही धरती माँ को किसी प्रकार का रासायनिक ज़हर देंगे।
सम्मेलन में सहायक संचालक कृषि रतलाम भीखा जी वास्के ने बीज की घटती गुणवत्ता और भूमि की दिन-प्रतिदिन कम होती उर्वरता पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि “आज खेती की जो स्थिति बिगड़ रही है, उसका सबसे बड़ा कारण स्वयं किसान का अज्ञान और लालच है।”थोड़े से अधिक उत्पादन और मुनाफे की लालसा में हम न केवल धरती माँ को जहर दे रहे हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को भी खतरे में डाल रहे हैं ,हम स्वदेशी बीज, जैविक उर्वरक और प्राकृतिक खेती की पद्धति को अपनाएं, किसान का गौरव फिर से स्थापित हो सके।
ब्रह्माकुमार सुमंत भाई ने दी शाश्वत योगिक खेती की प्रेरणा
माउंट आबू से पधारे कृषि एवं ग्राम विकास प्रभाग के मुख्यालय संयोजक ब्रह्माकुमार सुमंत भाई ने सभी किसानों को भारतीय संस्कृति की प्राचीन ऋषि परंपरा को पुनः अपनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि “कृषि केवल उत्पादन का साधन नहीं है, यह एक पवित्र साधना है।” इस दृष्टिकोण से जब किसान आत्मिक भावनाओं और राजयोग के संकल्पों के साथ खेती करता है, तो उसकी सोच, दृष्टि और व्यवहार में दिव्यता आती है। उन्होंने ऋषि-कृषि की बात करते हुए कहा कि प्राचीन भारत में खेती एक तपस्या मानी जाती थी, जिसमें किसान धरती माँ को नमन करता था और गाय माता को सम्मान देता था। यही वह भाव था जिसने भारतीय कृषि को समृद्ध, संतुलित, और आत्मनिर्भर बनाया।
सहायक संचालक कृषि जावरा बहन निशा सोलंकी ने कहा कि जैविक कृषि के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि आज की बदलती परिस्थितियों में केवल वही खेती टिकाऊ और लाभकारी है जो प्राकृतिक एवं जैविक पद्धतियों पर आधारित हो।
इंदौर ज़ोन की क्षेत्रीय निदेशिका राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी हेमलता दीदी ने आशीर्वचन देते हुए कहा आत्मनिर्भरता ,आध्यात्मिकता से जुड़कर ही संभव है। आत्मनिर्भर बनने के लिए किसी बाहरी सहारे की आवश्यकता नहीं है, बल्कि स्वयं के भीतर आत्मबल, विवेक और संकल्प-शक्ति को जागृत करना दीदी ने यह भी समझाया कि हमारे मन के संकल्पों का प्रभाव सीधा हमारे भोजन और खेती पर पड़ता है। जैसा अन्न होता है, वैसा ही मन बनता है — और जैसा मन होता है, वैसा ही हमारा कर्म होता है। इसलिए उन्होंने कहा, “मन को शुद्ध और सकारात्मक बनाए बिना हम न तो स्वस्थ रह सकते हैं और न ही समृद्ध।” कार्पोरेट ट्रेनर इप्का लेबोरेटरी रतलाम के डी. पी. आंजने जी ने सभी को ज्यादा से ज्यादा वृक्षारोपण करने का आग्रह किया
सभी अतिथियों ने दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इस अवसर पर उनका स्वागत परंपरागत तिलक, बैच (Badge) एवं पौधे भेंट कर किया गया, जो पर्यावरण संरक्षण और सम्मान की भावना का प्रतीक रहा। इंदौर से पधारी वरिष्ठ राजयोग शिक्षिका ब्रह्माकुमारी अनीता दीदी ने अपने मधुर एवं आत्मीय शब्दों के माध्यम से सभी अतिथियों, किसानों का हार्दिक स्वागत किया। उन्होंने कहा कि यह सम्मेलन न केवल एक आयोजन है, बल्कि कृषि, आध्यात्मिकता और आत्मनिर्भरता के संगम का एक प्रेरणास्रोत है। साथ ही डॉक्टर दिलीप नलगे जी ने स्वागत गीत भी प्रस्तुत किया। रतलाम सेवा केंद्र प्रभारी ब्रह्माकुमारी सविता दीदी ने सभी को राजयोग का अभ्यास कराया तथा कुमारियों किसान सम्मान नृत्य एवं धरती की पुकार विषय पर बहुत सुंदर लघु नाटिका भी प्रस्तुत की गई।कार्यक्रम में रतलाम सहित जावरा,आलोट, ताल, सैलाना, खाचरोद आदि सभी स्थानों के 150 से अधिक किसान भाई उपस्थित रहे।